लाला के पास गिरवी है जो जमीन
जाने कब वापस आएगी ।
बारिश में टपकती यह टूटी छत
जाने कब बन पायेगी ॥
तेरी माँ के हाथों के कंगन तो
पहले ही बिक चुके थे।
जाने कब तक चांदी की पायल
हमें रोटी खिलाएगी ॥
हर शाम तेरी छोटी बहन तेरी
राह देखती है।
"भैया आयेंगे" ऐसा कह के जाने
खुद क्यूँ रोती है ॥
माँ की आँखों के आंसू जाने
कैसे रुक गए हैं ।
शायद गाँव की तालाब की तरह
वो भी सुख गए हैं ॥
मैं भी अब बहुत
कमजोर हो चूका हूँ ।
शायद जिंदगी के बोझ से
काफी थक चूका हूँ ।
तुम्हे शायद याद हो
मंदिर वो चढाई के।
कुछ एक पाठ शायद
बुढे मास्टर की पदाई के ॥
किस्से चौबे चाची के
राजाओं की लड़ाई के।
वो जलेबी और समोसे
हलवाई की कढ़ाई के ॥
यह सारी चिट्टियाँ मुझसे
तेरी माँ लिखवाती है ।
डाकिये को भी वो
खूब डांट पिलाती है ॥
वो हमारे ख़त तुम तक
सही नहीं पहुंचता।
कैसे भला उसके बेटे का
जवाब नहीं आता ।
मैं भी चुप रहता हूँ
हिम्मत नहीं की बताने की।
टूटे माँ के दिल को
और ज्यादा सताने की।
कैसे कह दूँ के गया है तू
कभी वापस ना आने को।
के फुर्सत नहीं है तुझे अपना
पता तक बताने को।
ऐसी कई चिट्टियाँ पड़ी हैं
आँगन की छोटी अलमारी में ।
वो अलमारी भी बीक जाएगी
तेरी माँ की बीमारी में।
हो सके तो आना कभी
अपनी बड़ी गाडी में।
देख लेना अपनी माँ को
मैली कुचली साङी में।
वो स्कूल वो मंदिर
आज भी वैसे ही खङे हैं।
वो तेरे बचपन के कंचे अब भी
आँगन में ही पड़े हैं॥
Hey Sujeet, I like your thought process.Kudos to your work.Keep it up..
ReplyDeleteNice One!!!
ReplyDeleteBest Para:
ऐसी कई चिट्टियाँ पड़ी हैं
आँगन की छोटी अलमारी में ।
वो अलमारी भी बीक जाएगी
तेरी माँ की बीमारी में।
thnx sahil
ReplyDeleteshashank , tu to senti ho gaya be.... :P
माँ की आँखों के आंसू जाने
ReplyDeleteकैसे रुक गए हैं ।
शायद गाँव की तालाब की तरह
वो भी सुख गए हैं ॥
what a simple line but powerful!!!
Wow ! A setback, really, to the thought process for a while..
ReplyDeleteSimple words, deep meaning ! Make you lose deep within !!
Great work, Sujeet.. :)
thnx buddy , means a lot 2 me :)
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