Monday, March 12, 2012

पथिक


गर्मियों की धुप तेज ,
जल रहा है रेत सेज ,
दूर कहीं पानी का
प्रतिबिम्ब उसे छलता रहा ,
हाड मांस का मगर
ये पथिक चलता रहा !!

एक सुखी रोटी है ,
आधी टुकड़ी बोटी है ,
साथ चलता जानवर भी
सही पलता रहा ,
भूखा है , प्यासा सही
ये पथिक चलता रहा !!

// प्रतिबिम्ब = mirage of water

Thursday, March 1, 2012

कर के देखो , अच्छा लगता है


जिंदगी बड़ी बोझल हो गयी है
जैसे तेज भागती superfast local हो गयी है !!

सपनो का मतलब अब career बन चुका है ,
लंच में जैसे 2 minute maggi जम चुका है !!

दिवाली होली घर की सफाई के बहाने हैं
भूल चुके हम उनके असल में जो माने हैं!!

माँ की याद भी बस lunch time में आती है
बचपन की वो बातें फाइलों में खो जाती हैं!!

जीते हैं weekdays अब weekends की चाह में ,
मूड़ जाते हर मोड़ जो आते हैं राह में!!

थोड़ा सा बेहोश हूँ थोड़ा भटका ही सही ,
जिंदगी का मकसद ऐसे जीना तो नहीं !!

ना सोचो ,
क्या लेकर आये थे क्या लेकर जाओगे ,
जिंदगी ने जो दिया वो कब वापस लौटाओगे !!

2 पल ख़ुशी के . एक मुस्कान ही सही ,
2 सुखी रोटियां , ना पकवान ना सही !!

किसी के लिए इतना सा कर के देखो , जीवन सच्चा लगता है
वो कहते हैं ना :

" कर के देखो , अच्छा लगता है " !!