जिस चाँद को देखकर कोई भी युगल जोड़ी प्रेम के गीत गाती है , क्या वो चाँद प्रेम को परिभाषित कर सकता है ?
... यदि हाँ तो क्यूँ यह चाँद सूरज की उज्जवल किरणों की प्रेम भरी भेंट को रात आते ही मखमली दुधिया चादर बनाकर आसमान को भेंट कर देता है ? और आसमान से चाँद के लगाव को भी कहाँ तक प्रेम कहा जा सकता है ?
हर रात यह चाँद आसमान को अपनी दुधिया चांदनी में डुबो देता है , पर जिस रात आसमान को चाँद के साथ की जरुरत सबसे ज्यादा होती है , उसी रात यह स्वार्थी या अगर कह सके तो हालात का मारा चाँद आसमान का साथ छोड़ देता है .... वो रात होती है अमावश्या की काली रात ......जब आसमान के साथ कोई नहीं होता...सिवाय तारों के ।
तो क्या मैं मान लूँ की तारों को आसमान से प्रेम है ?
चलो मान लिया तारों को आसमान से असीम प्रेम है , पर यह क्या , यह बादल अचानक कहाँ से आ गए ?
इन्होने तारों को निगल लिया है , इन बादलों ने आसमान को फिर से अकेला कर दिया है ।
आसमान , चाँद , सूरज कोई भी नहीं जानता प्रेम क्या है? फिर क्यूँ यह वही क्रम सदियों से दुहरा रहे हैं?
क्या इसके पीछे प्रेम है या स्वार्थ?
प्रेम बस एक मनोवैज्ञानिक स्तिथि है । एक व्यक्ति अपने दिमाग की जिस स्तिथि को प्रेम कहता है ,
वो परिस्तिथियों का मारा और कुछ हद तक स्वार्थ से प्रेरित भाव है , पर यह प्रेम तो नहीं है।
प्रेम
वो है जो माँ अपने बच्चे से करती है , प्रेम उस नज़र में है जिससे एक पिता अपने बच्चों को देखता है।
प्रेम का यही रूप सबसे पवित्र
और सर्वथा मान्य है। और बाकी सब है बस इस तेज भागती दुनिया को थामने का एक प्रयास।
मैंने सुना है लोगों को कहते कि प्रेम माता पिता , भाइ बहन जैसे रिश्तों की तरह आप पर थोपा नहीं जाता।
यह ऐसा रिश्ता है जिसमें आप चुनते और साथ ही चुन लिए जाते हैं - पर क्या यही प्रेम है?
तो क्या हमें उस दूकानदार से भी प्रेम है जिसका माल हम चुनते हैं और जो हमें अपने ग्राहक के रूप में चुन लेता है?
नहीं , नहीं , यह प्रेम नहीं है , यह तो सौदेबाजी है। प्रेम का भाव चुन लेना और साथ ही चुन लिया जाना नहीं हो सकता। यह तो सौदा पटाने जैसा व्यापर से प्रेरित लग रहा है।
प्रेम वो है जो माँ अपने बच्चे को देती है , बिना किसी सौदे के , बिना किसी चाहत के , बिना किसी स्वार्थ के , बिना कुछ मिलने की उम्मीद किये हुए।
भले ही यह रिश्ते हमारे लिए भगवान् ने चुने हो, पर ये रिश्ते ही सबसे ऊपर हैं , और हमें सबसे प्यारे हैं !!!
मैं जनता हूँ कई लोग मुझे सहमत नहीं होंगे , पर शायद वोह भी सूरज चाँद और आसमान की तरह प्रेम के गूढ़ अर्थ को समझने के प्रयास में वोही बार बार करते हैं जो प्रेम से कहीं ज्यादा दूर और स्वार्थ व् सौदेबाजी के करीब है।
नोट - ऊपर लिखी बातें "शायद" मेरे असली विचार नहीं हैं , यह तो बस मेरे खोज के पात्र की तरह हैं , जिनके बिना मेरी खोज अधूरी है ।